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राजनीतिक साहुकारों के मुंह पर तमांचा

Hum Bharat
Friday, 15 January 2021
Last Updated 2021-01-15T10:25:52Z
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....और लोकतंत्र की नीलामी थमी
राजनीतिक साहुकारों के मुंह पर तमांचा


✍🏼 वसीम रज़ा खान

(Editor : Headline Post)

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 पिछले दिनों नासिक जिले के एक और नंदुरबार जिले की एक नगर पंचायत के सीधे निर्विरोध चुनाव को आयोग ने रद कर दिया. मामला ये था कि यहां सीधे बोली लगा कर करोड़ों रुपयों में सरपंच के पद बेचे गए थे और सरपंच अपने अनुसार सदस्यों का चयन भी भी पैसे लेकर कमाई करते हुए करने वाले थे. देवला तहसील में तो मंदिर के निर्माण के नाम पर पूरे 2.5 करोड़ रुपये में सरपंच पद की बोली को तय किया गया था. 

चुनाव कहीं के भी हों इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि इन चुनावों में पैसे का इस्तेमाल ना किया गया हो. लेकिन इस साल के ग्राम पंचायत चुनावों में सभी सीमाएं पार हो गई हैं. भारत निर्वाचन आयोग  के आदेश ने साबित कर दिया है कि इस चुनाव में प्रत्यक्ष मतदान द्वारा निर्णय लिया गया था. कम से कम यह आदेश लोकतंत्र की सुरक्षा करेगा. दोनों ग्रामपंचायतों में नीलामी की शिकायत पहुंची प्रशासन ने उनके खिलाफ कार्रवाई की और चुनाव आयोग को एक रिपोर्ट भेजी और चुनाव रद्द कर दिए गए. प्रशासन ने कहा कि इस प्रकार का कदम उठाकर मतदाताओं के अधिकार को छीनना लोकतंत्र का अपमान है. इस आदेश को राजनीतिक साहुकारों के मुंह पर तमांचा माना जा सकता है. यह एक अलिखित नियम है कि धन होने पर ही चुनाव लड़ा जा सकता है. इसके कई उदाहरण आज दिए जा सकते हैं. इससे पहले चुनाव में मतदाताओं को धन और सामान का वितरण एक सामान्य घटना थी. हालांकि, यह पहली बार हुआ है कि चुनाव के लिए सीधे बोली लगाई गई है. बैठक में बैठने और ग्राम सभा आयोजित करने का बहाना करके सरपंच पद की बिक्री लोकतंत्र की हत्या है. लोकतांत्रिक मूल्यों रौंदने वाले इस कदम को चुनाव आयोग के फैसले से रोक दिया गया है, यह एक अस्थायी उपाय नहीं होना चाहिए. इस तरह के मामले फिर से नहीं हों इसके लिए इस मामले की गहन जांच के बाद दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए, अन्यथा यह अन्य मामलों की तरह ही होगा और लोग चुनाव के महत्त्व को खत्म कर देंगे. लोकतंत्र को जीवित रखना है, तो यह महत्वपूर्ण है कि ऐसे मामलों से जल्द से जल्द निपटा जाए. पैसे लुटाकर चुनाव लड़ने की प्रथा को रोका जाना चाहिए, इसलिए तत्कालीन चुनाव आयुक्त टी. एन शेषन ने आचार संहिता को सख्ती से लागू करना शुरू किया. उसके बाद पैसे का उपयोग कुछ हद तक कम हो गया. लेकिन यह खत्म नहीं हुआ है. स्थानीय निकाय के चुनावों जैसे कि लोक सभा, विधान सभा, जिला परिषद आदि में भी धन के उपयोग के मामले सामने आते रहते हैं. एैसे करते हुए कई राजनेताओं पर आचार संहिता का उल्लंघन करने का भी आरोप है. ऐसी कोई मिसाल नहीं है कि ऐसे मामले में किसी को दंडित किया गया है. इसलिए ये गुन्हा बंद नहीं होने जरुरी हैं. छात्रों को ज्ञान दिया जाता है कि लोकतंत्र लोगों को, लोगों के लिए और लोगों द्वारा होता है. लोकतंत्र में मतदाता को राजा कहा जाता है. यह नीलामी की घटना राजा के मतदान के अधिकार को छीनने का एक प्रयास है. इस तरह की घटना लोकतंत्र के अंत की शुरुआत हो सकती है. इसलिए जल्द से जल्द इस तरह की सच्चाई को सामने लाने की जरूरत है, अन्यथा यह लोकतंत्र के लिए घातक होगा. संविधान ने हमें वोट देने का अधिकार दिया है. यह मतदाताओं को तय

करना है कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में किसे प्रतिनिधित्व दिया जाए. इसलिए मतदाताओं को

भी जागरूक होने की जरूरत है. तभी ऐसे मामलों पर

अंकुश लगाया जा सकता है; उसके लिए, लोकतंत्र

द्वारा हमें दिए गए वोट के अधिकार के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है.

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